abhivainjana


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Tuesday 26 April 2011

दो जोड़ी आँखें

दो जोड़ी आँखें
क्या सोचती क्या ढ़ूँढ़ती
क्यों भटकती है बार-बार
थकी हारी इन आँखो में
और कितना है इंतजार
   अकसर मैं सुबह छत से अपने पड़ोस में बसे उस बुजुर्ग दंपति तो देखा करती हूँ । जब-जब उन्हें देखती हूँ ,मैं जीवन के सत्य के उतनी ही करीब आती जाती हूँ।उन्हें देख मुझे उन पक्षियों की याद आती है जो तिनके चुन चुन कर अपना घरोंदा बनाते हैं, बच्चों को पालते पोसते हैं उन्हें उड़ना और जीवन से लड़ना सिखाते हैं । बच्चे जैसे ही उड़ना सीख जाते हैं ,उड़कर कहीं दूर चले जाते हैं ,अपना अलग घरोंदा बनाने ।शायद यही सच है, जीवन का सफर दो से शुरु होता है फिर बहुत से लोग आकर जुड़ने लगते हैं और अंत में फिर दो ही रह जाते हैं।
    मैं पड़ोस के उस बुजुर्ग दंपति की बात कर रही थी जिनकी चार संताने हैं ,दो बेटियाँ और दो बेटे ।सभी की शादियाँ हो चुकी हैं और अच्छी नौकरी के कारण वे घर से दूर अपनी- अपनी गृहस्थी में रमे हुये हैं। इधर अकेले बूढ़े माता पिता सुबह की पहली चाय के साथ अकेलेपन के इस कटु अहसास को झुठ्लाते हुये बच्चों के आने की प्रतीक्षा में दिन की शुरुवात करते हैं।
    उनकी बूढ़ी आँखों में आज भी इंतजार और उम्मीद का टिमटिमाता दीया जलता दिखाई देता है जब कि इन पाँच सालों में मैंने किसी को भी आते नहीं देखा ।आज भी इसी उम्मीद में रहते हैं, शायद कभी कोई आये, घर फिर से किलकारियों से गूँज उठे,कुछ शिकवे हों शिकायतें हों,थोड़ा प्यार हो थोड़ी फटकार हो,कभी रुठ्ना हो कभी मनाना हो और कभी हँसी के ठ्हाके हों तो कभी रोने के बहाने हों ।यही वो क्षण हैं ,जिन से जीवन को एक गति मिलती है,जीने की चाहत बढ़ती है,वरना जीवन उस विरान और सूखे रेगिस्तान की तरह होजाय जो कटते ही नहीं कटती।
    आज हमारे देश के अधिकतर घरों की यही कहानी है ।चाहे शहर हो या गाँव अच्छे रोजगार, बाहरी चमक दमक ,और आरामदायक जिन्दगी की चाह में आजकल की युवा पीढ़ी घर छोड़ कर पलायन कर रहे हैं । कोई विदेशों में जाकर बस रहे हैं तो कोई महानगरों में । इतने निष्ठुर और कर्तव्यहीन होगए कि व्यस्तता और लाचारी का ढोल पीटकर ये अपनी जिम्मेदारी  से मुँह मोड़ते जारहे हैं और रह जाते हैं सिर्फ दो जोड़ी बूढ़ी आँखें जिसमें इंतजार होता है बस सिर्फ इंतजार ही इंतजार………….
 

Sunday 17 April 2011

खबरों का दर्द……...

जाड़े की सर्द रात
बरसती बरसात
बाद्ल की गड़गड़ाहट
बिजली की चमचमाहट
जर्जर झोपड़ी में
 टूटी छ्त के नीचे……
एक मां..
भूखे बीमार बच्चे को
छाती से चिपकाए
ठिठुरती अकुलाती
भाग्य को कोसती
रात बिताती 
वो सवेरा कब होगा, जब
भर पेट भोजन होगा
तन पर कपडा होगा
सोने को बिछौना होगा
यही सोचती रात बिताती  
एक दिन. ऎसी सुबह आई
जिसे , देख भी न पाई ।
उसकी बेबसी और लाचारी
सूर्खियां बन गई थीं ,
अखबारों की ।
खबर छ्पी थी …….
“एक झोपड़ी में मां और बेटा
दोनों मरे हुए पाए गए ।
कहा जाता है…
कडा़के की ठंड ने
उनकी जान ले ली “ ।
विधि का भी क्या विधान है
यहां जीना  मुश्किल
 तो, मरना आसान है
 जीते जी कोई खबर न ले
 मरे तो, खबर बन जाए ।
खबर तो बस खबर  है,
अगले ही पल बासी हो जाती हैं ।
शायद इस बदलते, बिगड्ते
परिवेश का यही तकाजा है
खबरों को बासी जान भूल जाना
 फिर …
अगले की इंतजार में दिन बिताना ।
इन खबरों की यही नियति है
हर रोज
कचरे की ढेर में इकट्ठा होना ,
फिर वही दफन हो जाना  .
 

Tuesday 12 April 2011

चैत्र शुक्ल नवमी

मंगल भवन अमंगल हारी,
दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि
चैत्र शुक्ल नवमी धार्मिक दृष्टि से विशेष रुप से महत्वपूर्ण माना जाता है आज के ही दिन तेत्रा युग रघुकुल शिरोमणि महाराज दशरथ एवं महारानी कौशल्या  के यहां अखिल ब्रह्मांड़ नायक अखिलेश ने पुत्र के रुप में जन्म लिया राम जन्म के कारण ही चैत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी कहा जाता है। .राम नवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास का राम चरित्रमानस की रचना का श्रीगणेश हुआ था।
     राम चन्द्र जी सदाचार के प्रतीक है इसी लिए इन्हें"मर्यादा पुरूषोतम”  तथा “ विग्रह्वान धर्म " कहा गया है   वनवास के समय एक दिन भगवान श्रीराम शास्त्र सम्मत नीति  के विषय में बात करते हुए सीता और लक्ष्मण से कहते है “जीवन अमूल्य है,पर यह क्षण भंगुर  भी है इस लिए जीवन का एक-एक पल सत्कर्मो में सदुपयोग करना चाहिए ,तभी इस क्षण भंगुर जीवन की सार्थकता है “श्रीराम आगे कहते है, “सत्य का पालन सभी सत्कर्मो में प्रमुख है सत्य में समस्त धर्म,समस्त जग प्रतिष्ठित है.इस लोक में सत्य बोलने वाला मनुष्य परम धाम को प्राप्त होता है.इस जग में सत्य ही ईश्वर है  सत्य से बढ़ कर दूसरा कोई परम पद नहीं”
    रामनवमी के पावन पर्व  को पूरे भारतवर्ष में सभी भक्त जन अपनी- अपनी  श्रद्धानुसार  बडी  घूम घाम से मनाते  है इस दिन मन्दिरों को सजाते है , पाठ पूजा  ,भजन , कीर्तन करते हैं  तथा देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु उनके जन्म स्थली अयोध्या में  प्रतिवर्ष दर्शन करने आते हैं तथा अयोध्या की सरयू नदी के तट पर प्रात:काल से ही स्नान कर मंदिरों में दर्शन तथा पूजन करते हैं। जगह-जगह संतों के प्रवचन, भजन, कीर्तन चलते रहते हैं
                            सभी को राम नवमी की हार्दिक बधाई
आओ हम  अपने देश में फिर से राम राज्य लाने के लिएअपने कदम आगे बढ़ाए


Friday 8 April 2011

दिल दिया है जां भी देंगे ऎ वतन तेरे लिए “
सच्चा समाज सेवक श्री अन्ना हजारे का आमरण अनशन का आज चौथा दिन है. देश के कोने-कोने से आवाज़ बुलन्द है –“ अन्ना हम तुम्हारे साथ हैं .अन्ना के  करो या मरो के नारे ने एक बार फिर स्वत्रंता आन्दोलन की याद दिला दी  उस वक्त सारा देश एक जुट  होकर  गांधी जी के साथ आवाज से आवाज मिला रहा था-“ अंग्रेजो, भारत छोड़ो “ इतने साल बा्द फिर वही लहर वही जज्बा वही जुनून देखने को मिल रहा है. आज बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर नागरिक हर गली मोहल्ला भ्रष्टाचार के गर्त से निकलना चाहता है. बुलंद होती  जन-जन की आवाज  सरकार नक्कार नहीं सकती उसे  तो घुटने टेकना ही पड़ेगा . जय भारत…

Thursday 7 April 2011

सख्त लोकपाल विधेयक तैयार करने की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे गांधीवादी और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे
     
चारों तरफ भ्रष्टाचार का ही शोर है.दिन-रात उसी पर चर्चा होती हैं, लोग लेख लिखते है,कविता करते हैंऔर भाषणबाजी भी करते हैं ‘-हम भ्रष्टाचार को जड़ से मिटा देंगे.’ .आश्चर्य तब होता है जब वही लोग गले-गले तक उसी में डूबे हुए दिखाई देते हैं.
  आज देश में कोई भी ऎसा नागरिक नहीं, जो इससे बच पाया हो, या इससे पीड़ित ना हो. बच्चे के एड्मिशन से लेकर नौकरी तक धूसखोरी नामक भ्रष्टाचार के कांटे बीछे हुए हैं. आम आदमी को भी आज ठीक से जीने या आगे बढ़ने के लिये धूस से आमना-सामना करना पड़ रहा  है. धूस लेने वाले को प्रायः ये कहते सुना जाता है- ‘हमें भी तो आगे देना पड़्ता है’ यानी ये एक ऎ्सी लम्बी चेन है जो न टूटती है न ही खत्म होती है .
      भ्रष्टाचार जैसी बीमारी से निबटने के लिए देश को आज जनलोकपाल जैसे विधेयक की जरुरत है. समाजसेवक श्रीअन्ना हजारे  ने इस भ्रष्टाचार के खिलाफ जो जंग की शुरुवात की है वो काबीले तारीफ है.अब तो जंग जन आंदोलन के रुप में सामने आने लगी. हर तरफ आवाज उठने लगी है-‘अन्ना हम तुम्हारे साथ हैं ‘ देखना है, ये आन्दोलन क्या रंग लाती है.
     
 

Tuesday 5 April 2011

ऋतुराज बसन्त




लो ऋतुराज बसन्त फिर आये ,

सजधज धरती पर छाये.

हर्षित धरती पुलकित उपवन

सुगंध बिखेरे पवन इठलाए

शाखों ने फ़िर ओढ़ी चुनरी

झूम-झूम वे राग सुनाए

लो ऋतुराज बसन्त फिर आये ---

कोंपल खिले फूल मुस्काये

हुआ नवजीवन दर्शन

पीली-पीली चादर ओढ़े

खेत सरसों के लहराये

लो ऋतुराज बसन्त फिर आये

  हुआ श्रृंगार अब धरती का

भोर ने भी किरण बरसाई

स्वागत-स्वागत बसंत तुम्हारा

डाल- डाल पर पंछी गाए

लो ऋतुराज बसन्त फिर आये ,

सजधज कर धरती पर छाये.         

Monday 4 April 2011

 
  या कुन्देन्तुषारहारधवला या शुभ्रवस्तावृता,
        या वीणावरदंड्मंडिततकरा या श्वेतपद्मासाना